01-07 भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल
08-11 फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का कथन
12-18 अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना
19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन
01-04 विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना
05-08 भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन
09-14 संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन
15-31 अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना
32-34 भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना
35-46 भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना
47-50 भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना
51-55 बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन।
01-12 साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय
13-20 भगवत्-प्राप्त पुरुषों के लक्षण
01-18 ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय
19-34 ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय
01-04 ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति
05-18 सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय
19-27 भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण
01-06 संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय
07-11 जीवात्मा का विषय
12-15 प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप का विषय
16-20 क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय
01-05 फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन
06-20 आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन
21-24 शास्त्रविपरीत आचरणों को त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों के लिए प्रेरणा
01-06 श्रद्धा और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों का विषय
07-22 आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद
23-28 ॐतत्सत् के प्रयोग की व्याख्या
01-12 त्याग का विषय
13-18 कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन
19-40 तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद
41-48 फल सहित वर्ण धर्म का विषय
49-55 ज्ञाननिष्ठा का विषय
56-66 भक्ति सहित कर्मयोग का विषय
67-78 श्री गीताजी का माहात्म्य
|| गीता अध्याय क्रमांक 1 से 9 || || गीता अध्याय क्रमांक 9 से 18 ||